Saturday 25 February 2017

"असली" या "नकली"

आजकल देश भर में 10 रूपये के सिक्के को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है| दुकानदार व व्यापारी सिक्के को नकली बताकर लेने से कतरा रहे हैं इससे न केवल व्यापार बाधित हो रहा है बल्कि मुद्रा का नुकसान भी हो रहा है| इसके अलावा धातु को पिघलाकर उसका दुरूपयोग भी संभवत: किया जा रहा है| हालांकि रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने नवंबर में एक प्रेस नोट जारी कर ऐसी अफवाहों का खंडन किया था लेकिन अफवाहों का असर बदस्तूर जारी है और बाजारों में 10 रूपये के सिक्के का लेन-देन बंद ही है|

कुछ दिनों से तो मैं भी देख रहा था पर कल मन नहीं माना और लगा कि ऐसे बैठे रहने से काम नहीं चलेगा| रिजर्व बैंक के प्रेस स्टेटमेंट की कई सारे प्रिंटआॅउट्स निकलवा लिये और आसपास बांटना शुरू कर दिया, कुछ जगह दीवारों पर भी चिपका दिया ताकि राहगीरों की नजर भी पडती रहे| साथ ही दुकानदारों को भी वस्तुस्थिति से अवगत कराया |



अब इस पूरे वाकय़े से ये निष्कर्ष निकल कर आता है कि सोशल मीडिया प्रिंट मीडिया पर हावी हो गया है| वो ऐसे कि ये अफवाह एक वाट्सएप मैसेज के द्वारा फैली थी| लोगों ने बिना सोचे समझे फेसबुक और वाट्सएेप पर फाॅरवर्ड करना शुरू कर दिया और ऐसा नहीं था कि सिर्फ कम पढे लिखे लोगों ने ये अफवाह फैलाई है, इसमें पढे-लिखे लोग भी शामिल हैं| समस्या यह है कि सोशल मीडिया पर हम अपनी बौद्धिकता को दरकिनार कर जो दिखता है उस पर विश्वास कर लेते हैं उसकी सत्यता की जाँच नहीं करते,तथ्यों को परखते नहीं हैं क्यूंकि समय कहाँ है|

हम उस दौर में हैं जहाँ लोग खबरें जानने के लिये अखबार कम और सोशल मीडिया का सहारा ज्यादा लेते हैं और अंतत: ऐसी अफवाहों का शिकार बनते हैं| हालांकि अफवाहें तब भी फैलती थी जब सोशल मीडिया का अस्तित्व ही नहीं था लेकिन तब अफवाहों का असर और प्रसार सीमित था सोशल मीडिया के आने के बाद भौगोलिक परिस्थितियां नगन्य हो गयी हैं और खबरों के प्रसार की गति और दायरा दोनों बढ गया है| देखा जाये तो अमेरिका के चुनाव का परिणाम भी इसी सोशल मीडिया की क्रांति का ही नतीजा है| प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने शुरूआत से ही डोनाल्ड ट्रंप का विरोध किया फिर भी वह जीत गये क्यूँकि ट्रंप सोशल मीडिया के द्वारा अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे|

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