Sunday, 22 September 2013

कितनी बार फिसलना होगा
कितनी बार सम्हलना होगा
असफलता के दौर से,
कितनी बार गुजरना होगा...

अब चीखे चिल्लाये दिल
कोलाहल मचाये दिल
आखिर कितनी बार खुद को साबित करना होगा....

अब थम जाने को जी चाहता है,
रूठे नसीब को मनाने को जी चाहता है....

शायद बेबस निगाहो को कसक अब भी बाकी है,
पढ लीया हर पाठ पर सबक अब भी बाकी है....

इक बार और मना लेते है इस दिल को
जो हर अनदेखी आहट पर रोता है,
वो कहते है ना............

जो होता है अच्छे के लिये होता है.................

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