Wednesday, 5 October 2016

धनिया की व्यथा...

वर्षों ेसे बेचारी धनिया अपने अस्तित्व को बचाने की कवायद में लगी है| सब्जियों के समाज में धनिया की दशा हमेशा से ही दयनीय रही है|अब हालात यूं हैं कि धनिया को अपनी विलुप्ति का डर सताने लगा है|





लोगों ने आजकल पूछना ही बन्द कर दिया है| अगर खुल्ले पैसे बचे तो 2-4 रूपये की तुलवा ली वरना कौन सी अटक रही है | ज्यादा ही अर्जेन्ट हुआ तो रेडीमेड पेस्ट ले लिया लेकिन किसी ने धनिया के आत्मसम्मान के बारे में नहीं सोचा | वो भी आखिर सजीव है उसके भी कुछ सपने हैं कुछ अरमान हैं | बेचारी में कुछ ऐसे लक्षण भी नहीं हैं ताकि औषधि के रूप में प्रयोग की जा सके|

जहां आलू प्याज का समाज में इतना स्टेटस है प्याज इतनी मंहगी हो जाती है कि आयात करनी पडती है| बिना प्याज के कोई सब्जी नहीं बनती|  नीम्बू टमाटर का भी अच्छा खासा रूतबा है सोसायटी में | इन सबके बीच धनिय़ा बेचारी अपनी पहचान खोती जा रही है|

धनिया की स्थि्ति बिल्कुल फिल्मों में आइटम गर्ल जैसी हो गयी है जैसे उनको भी ग्लैमर के लिये रखा जाता है धनिया भी सब्जी में सजावट का काम करती है|

और तो और अंग्रेजी में नाम भी इतना मुश्किल है कि लोग लिखने या बोलने से पहले 10 बार सोचें| जितना बडा नाम उतनी छोटी पहचान |

भले ही अपने भविष्य की कितनी चिंताएं हों, धनिया फिर भी खुश है और धनिया को गर्व है अपने ऊपर कि जहां और किसी सब्जी से कोई सुगंध नहीं आती धनिया अपनी खुशबू से पूरा सब्जी का ठेला महका देती है|

1 comment:

  1. धनिया की व्यथा-कथा पसन्द आई . लेकिन सब दिन ( सब जगह भी )होत न एक समान . कभी कभी यह भी होता है कि ठेले वाले पाँच रुपए की दो-चार डण्डियाँ पकड़ा देते हैं .कढ़ी-पत्ता के दौर में जरूर धनिया का अवमूल्यन हो रहा है .

    ReplyDelete