लडकी वो गुमनाम सी
जाने कितने मौसम बीते
जाने कितने अरसे
जाने क्यू विलगित पन्छी सी
निकली नही है अपने घर से
कभी फुदकती थी नन्ही चिडिया सी
मेरे घर के आन्गन मे
कभी हिलोरे पैदा करती
मेरे इस जीवन मे
कभी उजली सुबह सी वो
कभी धुन्धली शाम सी
लडकी वो गुमनाम सी......
(रूप वर्णन)
नेत्र मोती से , द्रष्टि बिन्दुवत्
ताके प्रतिक्षण शून्य सतत्
अधर सुर्ख से , रूप स्वर्णिमा
मुख पे लिये ओज की लालिमा
अद्भुत अद्वितीय भाव-भन्गिमा
केश अभ्र से , चाल हिरण सी
अस्थिर काया , सूर्यकिरण सी
वारि धार अविराम सी
लडकी वो गुमनाम सी......
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