मेरी भतीजी अभी नर्सरी में है और यहीं घर के पास एक निजी स्कूल में
नर्सरी मे पढती है| स्कूल यूं तो अच्छा है,सारी सुविधाएं हैं पर एक चीज ने मुझे बहुत
हैरान किया वो है नर्सरी कक्षा का पाठ्यक्रम| क्या आप यकीन करेंगे कि नर्सरी कक्षा के
पाठ्यक्रम में इंग्लैंड की करेंसी क्या है जैसे विषय पढाए जा सकते हैं |
अब भारत की विविधता का एक नमूना और देखते हैं| उत्तर प्रदेश के एक कस्बे में सरकारी
स्कूल में निरीक्षकों की एक टीम पहुंची यह देखने के लिये कि स्कूल में शिक्षा का
स्तर कैसा है|निरीक्षकों ने प्रश्न किया कि भारत के राष्ट्रपति का नाम क्या है
लेकिन कोई शिक्षक जवाब न दे पाया यही नहीं खुद प्रधानाध्यापक बगलों झांकने लगे जब
उनसे बुधवार का अंग्रेजी ट्रांसलेशन पूछा गया|
कैसी विडंबना है जहां एक ओर महज 2-3 साल की बच्ची जिसकी ए बी सी डी
सीखने की उम्र है उसे इंग्लैंड की मुद्रा बताई जा रही है, बताई क्या रटाई जा रही
है और दूसरी ओर 40 साल के शिक्षक को राष्ट्रपति का नाम नहीं पता|
कुछ अभिभावक शायद समर्थन भी करते हैं ये सोचकर कि बच्चा इतनी सी उम्र
में इतना सीख रहा है आगे जाके क्या करेगा वो ये भूल जाते हैं कि बच्चे के पैदा
होने के उपरांत उसे दूध पिलाया जाता है बर्गर नहीं खिलाया जाता|
शिक्षा को लेकर मानसिकता अभी भी नहीं बदली है ना छात्रों की, न
अभिभावकों की, न शिक्षकों की और न सरकार की|
मानसिकता यूं कि प्रोसेस की बजाय आउटकम पर ध्यान देते हैं लोग| बच्चे के इस बार 90
से ऊपर आना चाहिये बच्चे ने कितना सीखा उससे हमें कोई लेना देना नहीं|
यही रवैया शिक्षकों का भी है पढाना उनके लिये महज औपचारिकता है सिर्फ
सरकारी नहीं प्राइवेट स्कूलों में भी किस तरह पढाई होती है जगजाहिर है|
जब सभी यही रवैया अपनाएंगे तो छात्र भी पीछे क्यूं रहें, उन्हे तो बस 50 मे
से 17 की जुगाड करनी है और इसमें उनकी भी गलती नहीं है शिक्षक का इनपुट ही छात्रों
का आउटपुट बनेगा|
सरकार ने कुछ दिनो पहले एक ड्राफ्ट तैयार किया है नयी शिक्षा नीति का, बातें उसमें भी कुछ
नयी नहीं है न एसा कुछ है जिससे आमूलचूक परिवर्तन आ जाये| बस एक चीज सही लगी कि NCERT से सहयोग
लिया जायेगा शिक्षा को जमीनी स्तर तक ले जाने में,और यही जरूरी है|
शिक्षा देने के लिये छात्र का मनोविज्ञान समझना बहुत जरूरी है उसके
दिमाग के अंदर की प्रोसेस को समझना पडेगा| इंसान का दिमाग इमेजेस, पिक्चर्स में सोचता है तो
जरूरी है कि उसे इसी भाषा में समझाया जाये|
उदाहरण के लिये NCERT की Science की बुक में थ्योरी के साथ साथ कुछ प्रयोग
भी दिये होते हैं अध्यापक उसी चीज को छोड देते हैं जो कि एक पाप से कम नहीं है
कारण दो हैं या तो स्कूल में साधन उपलब्ध नहीं है जो प्रयोग में चाहिये या फिर जब
परीक्षा में आना ही नहीं हैं तो हम क्यूं पढायें |
समय व्यर्थ किया जाता है होमवर्क चेक करनें में और पनिशमेंट देने में| आधे घंटे का मकसद
सिर्फ लर्निंग और लर्निंग होना चाहिये| इन्ट्रेक्टिव डिस्कशन होना चाहिये|
सरकार नयी शिक्षा नीति ले कर आयी है अच्छी बात है लेकिन ये समझना
जरूरी है कि नीति से ज्यादा जरूरत रीति को बदलने की है |
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